रांची- झारखण्ड हाई कोर्ट ने एक पारिवारिक मामले में अहम फैसला सुनाया है. अदालत ने इस केस में फैसला सुनाते हुए पौराणिक ग्रंथों का भी हवाला दिया. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि भारत में बुजुर्ग सास या पति की दादी की सेवा करना सांस्कृतिक प्रथा और दायित्व दोनों है. अदालत ने मनुस्मृति के श्लोकों का हवाला देते हुए कहा कि जिस घर में महिलाएं दुखी रहती है वह परिवार जल्द नष्ट हो जाता है, जहां महिलाएं सुखी रहती हैं वह परिवार फलता-फूलता है.
मामला, रूद्र नारायण राय बनाम पियाली राय चटर्जी केस से जुड़ा है. अदालत ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी पत्नी की ओर से सास की सेवा करने से बचने के लिए ससुराल वालों से अलग रहने की जिद अनुचित है. अदालत ने यह माना कि महिला को अपने पति पर अपनी मां को छोड़ने का दबाव नहीं डालना चाहिए.
दरअसल, दुमका फैमिली कोर्ट ने एक पारिवारिक विवाद में आदेश दिया था कि पति अपनी पत्नी को प्रति माह 30 हजार रुपए देगा. इसके साथ ही फैमिली कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि पति अपनी पत्नी के साथ नाबालिग बेटे की परवरिश के लिए भी 15 हजार रुपए प्रति माह दे. दुमका फैमिली कोर्ट के इस आदेश को झारखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. जिसपर हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सुभाष चांद की कोर्ट में सुनवाई हुई.
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सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि पत्नी ने जून 2018 में अपना ससुराल छोड़ दिया और वापस अपने ससुराल में आने से इनकार कर दिया. जिसके बाद उसके पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 10 के तहत इस आधार पर मुकदमा दायर किया था कि उसकी पत्नी को उसकी बूढ़ी मां और नानी की सेवा करना पसंद नहीं था. इसी वजह से वह उस पर उनसे अलग रहने का दबाव बनाती थी.
सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की ओर से की गई बहस और साक्ष्यों की जांच करने के बाद अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि पत्नी ने स्वेच्छा से अपना ससुराल छोड़ा था. उनके ससुराल छोड़ने का कारण बुजुर्ग सास और दादी सास की देखभाल की जिम्मेदारी को पूरा करने की अनिच्छा थी. जिसकी वजह से उसने अपने पति पर अलग रहने का दबाव डाला. अपने आदेश में जस्टिस सुभाष चंद्र ने नरेंद्र बनाम मीना के केस में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का हवाला भी दिया, जिसमें यह माना गया था कि पत्नी द्वारा पति को परिवार से अलग करने के लिए लगातार प्रयास करना ‘क्रूरता’ का कार्य है.
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमे पत्नी को 30 हजार रूपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया. वहीं कोर्ट ने बेटे का गुजारा भत्ता 15 हजार रुपए प्रति माह से बढ़ाकर 25 हजार रूपये कर दिया।
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