डेस्क- राजभवन की एक महिला कर्मचारी ने राज्यपाल सीवी आनंद बोस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. महिला कर्मचारी ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल ने उसके साथ यौन उत्पीड़न किया और राज्यपाल को दी गई संवैधानिक छूट के कारण उसे कोई राहत नहीं मिली.
याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत दी गई व्यापक छूट के कारण याचिकाकर्ता को कोई राहत नहीं मिली है और इसलिए वह सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए बाध्य है. बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 361 (2) के अनुसार राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू या जारी नहीं रखी जा सकती है.
याचिका में अनुच्छेद 361 का हवाला देते हुए दलील दी गई है कि ऐसी शक्तियों को पूर्ण नहीं समझा जा सकता है, जिससे राज्यपाल को ऐसे कार्य करने का अधिकार मिल जाए जो अवैध हैं या जो संविधान के भाग III पर हमला करते हैं. यह छूट पुलिस की अपराध की जांच करने या शिकायत/एफआईआर में अपराधी का नाम दर्ज करने की शक्तियों को कम नहीं कर सकती.
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महिला ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि राज्यपाल अनुच्छेद 361 के तहत दी गई छूट का प्रयोग किस सीमा तक कर सकता है, इसके लिए दिशानिर्देश और योग्यताएं निर्धारित की जाएं. महिला ने बताया कि उसने इस संबंध में राजभवन को एक शिकायत भी लिखी थी, जिसमें उसने अपनी शिकायतों को उजागर किया था, लेकिन संबंधित अधिकारियों ने उसे अपमानित किया और मीडिया में भी उसका मजाक उड़ाया गया. इतना ही नहीं उसे एक पॉलिटिक्ल टूल करार दिया गया, जिसमें उसके आत्म-सम्मान की कोई सुरक्षा नहीं की गई.
याचिका में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है और संवैधानिक प्रतिरक्षा की आड़ में राज्यपाल को किसी भी तरह से अनुचित तरीके से कार्य करने और लैंगिक हिंसा करने की अनुमति नहीं है, जबकि देश के हर दूसरे नागरिक को ऐसा करने से प्रतिबंधित किया गया है और जो सीधे संविधान के तहत याचिकाकर्ता सहित प्रत्येक व्यक्ति को दिए गए मौलिक अधिकारों पर आघात करता है.
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