डेस्क- सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने जजों की सैलरी में देरी पर राज्य सरकारों की आलोचना की. बेंच ने कहा कि चुनावी वादों के लिए राज्य के पास धन है, लेकिन जजों की वेतन संबधी दावों को वित्तीय संकट बताया जाता है. एससी बेंच ने दिल्ली चुनाव में भी किए जा रहे वादों पर टिप्पणी की.
कोर्ट ने तमाम राज्य सरकारों की तरफ से मुफ्त में बांटे जाने वाले पैसों की तरफ इशारा करते हुए कहा, “जो कोई काम नहीं करते, उनके लिए आपके पास पैसे हैं. जब जजों के वेतन और पेंशन का सवाल आता है तो आर्थिक दिक्कतों का हवाला देने लगते हैं.”
ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन नाम की संस्था की तरफ से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अलग-अलग पार्टियों की तरफ से हो रही घोषणाओं की चर्चा की.
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कोर्ट ने कहा, “चुनाव आते ही लाडली बहन जैसी योजनाओं की घोषणा शुरू हो जाती है, जहां लाभार्थियों को हर महीने एक तय रकम देने की बात की जाती है. दिल्ली में पार्टियां सत्ता में आने पर हर महीने 2500 रुपए तक देने का वादा कर रही हैं.”
जस्टिस गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की 2 सदस्यीय बेंच को अटॉर्नी जनरल ने बताया कि केंद्र सरकार एक अधिसूचना लाने पर विचार कर रही है, जिससे याचिका में उठाई गई चिंताओं का हल हो सकेगा. इस पर जजों ने कहा कि सरकार अगर भविष्य में ऐसा करती है तो इसकी जानकारी उन्हें दे. चूंकि यह मामला काफी समय से लंबित है, इसलिए इसकी सुनवाई अब स्थगित नहीं की जाएगी.
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