डेस्क- सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों को लेकर अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा है कि एक वकील अपने मुवक्किल के निर्देश पर काम करता है. वह अपनी तरफ से कोर्ट में कोई बयान नहीं देता या मुकदमे के निपटारे को लेकर कोई प्रस्ताव नहीं देता. इस कारण उसकी सेवा को उपभोक्ता संरक्षण कानून, 1986 की धारा 2(1)(o) में दी गई सर्विस की परिभाषा के तहत नहीं माना जा सकता.
वकीलों को लेकर 2007 में आए राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग यानी NCDRC के फैसले को पलट दिया है. NCDRC ने कहा था कि वकील की अपने मुवक्किल को दी गई सेवा पैसों के बदले में होती है. इस कारण वह एक कॉन्ट्रैक्ट की तरह है. सेवा में कमी के लिए मुवक्किल अपने वकील के खिलाफ उपभोक्ता वाद दाखिल कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने इसे नहीं माना है. NCDRC के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने 13 अप्रैल 2009 को रोक लगा दी थी. अब जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और पंकज मिथल की बेंच ने अंतिम फैसला दिया है. जजों ने कहा है कि वकालत एक प्रोफेशन है. इसे व्यापार की तरह नहीं देखा जा सकता. किसी प्रोफेशन में कोई व्यक्ति उच्च दर्जे का प्रशिक्षण लेकर आता है. इस कारण उसके काम को व्यापार नहीं कहा जा सकता.
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