रांची- 19 चिकित्सकों ने झारखंड राज्य में अपनी सेवा देने से इंकार कर दिया है. चयनित चिकित्सक अपनी सेवा दूसरे प्रदेशों में देना चाहते है. ऐसे में झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने झारखंड मेडिकल काउंसिल से इन चिकित्सकों की रजिस्ट्रेशन रद्द करने की अनुशंसा की है. यही नहीं राज्य की मेडिकल काउंसिल ने झारखंड राज्य से निबंधित चार चिकित्सकों को शोकॉज भी किया है.
दरअसल, झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) ने स्वास्थ्य विभाग के अधीन विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्ति को लेकर विज्ञापन का प्रकाशन किया था. 771 पदों के लिए निकाली गई इस नियुक्ति में 578 पद फिर से खाली रह गए. शैक्षणिक योग्यता, कार्य अनुभव और साक्षात्कार के आधार पर 193 चिकित्सकों का चयन किया गया. इनमे 19 वैसे चिकित्सक है जिन्होंने झारखण्ड में सेवा देने से इंकार कर दिया.
इस मामले पर झारखंड मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉ बिमलेश सिंह ने कहा कि राज्य की मेडिकल काउंसिल से रजिस्टर्ड डॉक्टरों से स्पष्टीकरण मांगा गया है. 19 में से चार डॉक्टर झारखंड मेडिकल काउंसिल से रजिस्टर्ड हैं. शेष 15 डॉक्टर दूसरे प्रदेशों से रजिस्टर्ड हैं. ऐसे में उनका रजिस्ट्रेशन कैंसिल करना हमारे हाथ में नहीं है.
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वहीं झारखंड राज्य स्वास्थ्य सेवा संघ के राज्य सचिव डॉ मृत्युंजय सिंह ने कहा कि झारखंड में प्राइवेट प्रैक्टिस पर कई नियम-शर्तों को लगा कर जिस तरीके से बैन लगाया गया है इससे चिकित्सकों में निराशा है. क्योंकि राज्य सरकार की तरफ से उन्हें नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस (एनपीए) नहीं दिया जाता है. सैलरी स्ट्रक्चर अन्य राज्यों की तुलना में झारखंड के चिकित्सकों का काफी कम है. इस वजह से भी चिकित्सक यहां काम नहीं करना चाहते हैं.
वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन(आईएमए) झारखंड के सचिव डॉ प्रदीप सिंह ने कहा कि राज्य में चिकित्सकों पर होने वाले हमले को लेकर असुरक्षा का वातवरण है. मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट की मांग लंबे समय से हो रही है, लेकिन सरकार इसे अनसुना कर देती है, जिस कारण झारखंड में चिकित्सक काम नहीं करना चाहते है. वहीं पड़ोसी राज्य बिहार में ऐसा नहीं है, वहां के चिकित्सकों को झारखंड के चिकित्सक से ज्यादा वेतन मिलता है.
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