डेस्क- सुप्रीम कोर्ट ने श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थियों को लेकर सख्त टिप्पणी की। जस्टिस दीपांकर दत्ता ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है।
अदालत ने कहा कि हम 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थी की हिरासत में लिए जाने के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है। दुनिया भर से आए शरणार्थियों को शरण क्यों दे?
दरअसल, श्रीलंका के एक व्यक्ति को हिरासत में लेने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी, लेकिन अदालत ने इस मामले में दखल देने से मना कर दिया।
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इसे लेकर याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह वीजा पर श्रीलंका से भारत आया है, क्योंकि वहां उसकी जान को खतरा है। इस पर अदालत ने पूछा कि उसका यहां बसने का अधिकार क्या है? जिस पर वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता एक रिफ्यूजी है।
जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि अनुच्छेद-19 के अनुसार भारत में सिर्फ उन्हीं लोगों को बसने का अधिकार है, जिन्हें यहां की नागरिकता प्राप्त है। इस पर वकील ने कहा कि उसके याचिकाकर्ता की जान को खतरा है तब जस्टिस दत्ता ने जवाब देते हुए कहा कि किसी दूसरे देश में चले जाए।
बता दें कि आपको बता दें कि लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) ऑपरेटिव होने के संदेह में याचिकाकर्ता को दो लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया था। UAPA की धारा-10 के तहत ट्रायल कोर्ट ने साल 2018 में उसे दोषी माना और 10 साल की कैद की सजा सुनाई।
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मद्रास हाई कोर्ट ने साल 2022 में उसकी सजा कम कर 7 साल कर दी। साथ ही हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि सजा खत्म होते ही उसे भारत छोड़ना चाहिए। जब तक भारत नहीं छोड़ेगा, तब तक वह शरणार्थी कैंप में रहेगा।