पटना- बिहार की राजनीति में एक नई चर्चा शुरू हो गई है. बिहार से भारत के संविधान ‘सेकुलर’ शब्द हटाने की मांग उठने लगी है. जदयू के पूर्व प्रवक्ता अजय आलोक ने देश के प्रधान मंत्री से बड़ी मांग करते हुए कहा है कि मेरी और मेरे साथ पूरे भारत के लोगों की अपील है कि इसी मॉनसून सत्र में विपक्ष की मौजूदगी में संविधान से ”सेकुलर” शब्द नाम का कलंक हटा कर बाबा साहब को श्रधांजलि दी जाए.
अजय आलोक ने अपने ट्वीट को पीएमओ और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को टैग भी किया. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, ‘सेकुलर’ शब्द संविधान में विपक्ष की गैरमौजूदगी में जोड़ा गया था, मगर उनकी मौजूदगी में हटा दीजिए. पूरा देश देखना चाहेगा कि इस शब्द को हटाने का विरोध कौन कर रहा है. खुलकर सामने आना चाहिए ऐसे लोगों को.
अजय आलोक ने कहा कि इस देश में कोई ‘सेकुलर’ नहीं है. सभी अपने धर्म में आस्था रखते हैं और पूजा, इबादत, प्रार्थना करते हैं. सिर्फ कट्टरवादी चाहते हैं सेकुलरिज्म की आड़ में दूसरे धर्म के लोगों को निशाना बनाया जाए. इसमें पहले निशाने पे हिंदू हैं; जो दूसरे धर्म का सम्मान करते हैं. संभल जाओ सब लोग.

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बता दें कि भारत के संविधान की प्रस्तावना जब तैयार की गई थी तो शुरुआत में इसमें सेकुलर शब्द नहीं था. वर्ष 1976 में इमरजेंसी के दौरान प्रस्तावना में संशोधन किया गया, जिसमें ‘सेकुलर’ शब्द को शामिल किया गया था. जिस समय संविधान में ‘सेकुलर’ शब्द जोड़ा जा रहा था उस समय विपक्ष सदन में नहीं था. विपक्ष की गैरमौजूदगी में तत्कालीन सरकार ने इसे संविधान में जोड़ा था. ‘सेकुलर’ शब्द संविधान में बाद में जोड़ा गया और यही कारण है कि कई बार विभिन्न हलकों से इसे हटाने की मांग की जाती रही है.
जदयू के पूर्व नेता की इस मांग पर बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल का कहना है कि तुष्टिकरण की राजनीति के लिए संविधान में ‘सेकुलर’ शब्द जोड़ा गया था और इसको जल्द से जल्द हटा देना चाहिए, इसी में देश और समाज की भलाई है.
हालांकि, भाजपा की सहयोगी पार्टी जदयू का विचार इस मामले पर जरा हटके है. जदयू को इस बात पर आपत्ति है कि संविधान से ‘सेकुलर’ शब्द हटाया जाए. पार्टी के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है कि संविधान में जब ‘सेकुलर’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है तो उसे हटाने का कोई औचित्य नहीं है.
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