डेस्क- आज होलिका दहन का त्यौहार मनाया जा रहा है. होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर मनाया जाता है और अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाती है. होलिका दहन पर होलिका जलाई जाती है. माना जाता है कि होलिका की अग्नि के साथ ही बुराई का भी नाश हो जाता है.
होलिका दहन आमतौर पर प्रदोष काल में किया जाता है, लेकिन अगर भद्रा का साया हो तो होलिका दहन का समय बदल जाता है. मान्यतानुसार भद्रा को शुभ नहीं माना जाता है. जिस भी दिन भद्रा लगती है उस दिन या उस समयावधि में किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं.
खासतौर से भद्राकाल में पूजा-पाठ करने से परहेज किया जाता है. ऐसे में होलिका दहन पर भद्रा का साया इस बार लगने से होलिका दहन प्रदोष काल में ना होकर देर रात किया जाएगा.
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आज 13 मार्च, गुरुवार की रात सुबह 10 :35 से रात 11:29 बजे तक भद्रा का साया रहने वाला है. ऐसे में रात 11:30 बजे के बाद होलिका दहन किया जा सकेगा. साढ़े ग्याहर बजे से होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शुरू होगा और देररात 12:15 बजे तक होलिका दहन हो सकता है. ऐसे में तकरीबन 45 मिनट तक होलिका दहन किया जा सकेगा.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी जो हिरण्यकश्यप के बेटे प्रह्लाद को जलती लकड़ियों के ढेर में लेकर बैठ गई थी. होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि आग उसे नहीं जला सकती परंतु मासूम प्रह्लाद पर भगवान विष्णु की कृपा थी.
हिरण्यकश्यप प्रह्लाद को मारना चाहता था लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई. ऐसे में हर साल होलिका दहन पर लकड़ियों का ढेर जलाया जाता है और इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है.
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होलिका दहन को छोटी होली भी कहा जाता है. इसके अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाती है. इस दिन दोस्तों और परिवार के साथ होली खेलकर त्योहार मनाया जाता है. घर में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं. कहते हैं इस दिन गैर भी दोस्त बन जाते हैं. ऐसे में सुबह से शाम तक होली खेलकर त्योहार मनाया जाता है.